लद्दाख में फिर हो सकता है खूनी टकराव, लेकिन चीन के लिए नहीं होगा आसान।
लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ फिर से खूनी टकराव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन चीन को हिमालय की इन् इलाकों में लोजिस्टिक्स जुटा पाना आसान नहीं होगा। पूर्व इंडियन एयरफोर्स चीफ एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ का मानना है कि फिर से भारत और चीन के बीच टकराव से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालाकिं चीन की एयरफोर्स की ताक़त कागजों में बहुत भारी है, ढेर सारी टेक्नोलॉजी उनके पास है, लेकिन प्रकृति और लोजिस्टिक्स उनके विरुद्ध जाती है। हिमालय के इस इलाके में साजो सामान जुटा पाना आसान नहीं है, खुद प्रकृति यहाँ सबसे बड़ी चुनौती है। उनका मानना है भारतीय सेना और एयरफोर्स पीपल्स लिबरेशन आर्मी और एयरफोर्स के खिलाफ ज्यादा भरी पड़ेगी, क्योंकि भारत जिस जगह पर मौजूद है, वहां से चीन पर कार्यवाही करना ज्यादा आसान है।
चीन अभी भी पुराने सोवियत एरा सिद्धांतों मे यकीन करता है, जिसमें उसके मुख्य हथियार मिसाइल और राकेट हैं। लेकिन आज का चीन वो पुराना चीन नहीं है जो कोरिया में लड़ा था। आज का चीन अपनी वन चाइल्ड पालिसी के बाद ज्यादा बड़े हादसों को झेल नहीं पायेगा।
कागज पर चीनी एयरफोर्स भारत के लिहाज़ से बड़ी है, उसकी क्षमतायें हमसे ज्यादा है, उनके रक्षा बजट को एक बड़ी अर्थव्यवस्था सहारा देती है, जो भारत से तीन गुना बड़ी है। लेकिन ये पब्लिक बजट है, जिसमें बहुत सारी बातें छिपाई जाती हैं। PLA की एयरफोर्समें 1,500 फाइटर जेट्स हैं, जिनमें से 800 4th जनरेशन के हैं। चीन ने लिमिटेड नंबर्स में 5th जनरेशन के फाइटर जेट्स J-20 और J-31 को भी तैनात किया है और 24 सुखोई-35 को भी अपनी एयरफोर्स की फ्लीट में शामिल कर लिया है, जो उसने रूस से ख़रीदे हैं और इसके साथ साथ चीन ने S-400 एयर डिफेन्स सिस्टम भी ख़रीदा है।
चीन भारत से लगी सीमा LAC के पास तैनात कर रहा है आयरन मैन सोल्जर्स।
हिमालय के कठिन इलाके के प्रभाव को भी ध्यान में रखाना जरुरी है।
PLA की एयरफोर्स की ताकत के बारे में बात करते हुए धनोआ ने कहा कि चीन के पास रणनीतिक बमवर्षक हैं और उसने एडवांस्ड AWACS एयरबोर्न वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम भी तैनात किया है। इसके अलावा चीन के पास यूएवी का एक बड़ा बेड़ा है, जिसमे स्टेल्थ यूएवी भी शामिल है। उन्होंने कहा कि चीनी सेना ने रॉकेट फोर्स भी तैनात किया है, जो किसी भी सैन्य ठिकानो को निशाना बनाने की क्षमता रखते हैं, यहाँ तक की भीतरी इलाकों मे मौजूद सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाने की ताकत इनमें है।
चीन ने अमेरिका का मुकाबला करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम डेवेलप किया है। यह हमारी तकनीक से कहीं ज्यादा है, हम इनसे कहीं भी मेल नहीं खाते। गौर करने की बात यह है कि जब हम हिमालय से परे तिब्बत में देखते हैं तो ये तकनीकें कितनी भरोसेमंद हैं, ये कहा नहीं जा सकता। साथ ही एक सवाल यह भी है कि तिब्बत और शिनजियांग में चीन की बुनियादी ढांचे की स्थिति को देखते हुए भारत के खिलाफ इसको कितना इस्तेमाल मे लाया जा सकता है।
इलाके के प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
ऊंचाई और अत्यधिक ठंड के कारण एयरक्राफ्ट ऑपरेशन पर इसका प्रभाव पड़ता है। इसका असर टार्गेटिंग और हथियारों पर भी पड़ता है, जिसका फायदा उठाकर दुश्मन छिप सकते हैं, भाग सकते हैं, और वह दुश्मन हम हैं, यानि भारत, जिसको इसका फायदा मिलेगा। यहाँ राडार मे दुश्मन को पकड़ पाना भी एक गंभीर समस्या है। इन सभी के कारण रिएक्शन टाइम बेहद कम है, और जब तक भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट्स हिमालय पार नहीं करते, तब तक चीन के पास प्रतिक्रिया के लिए कम समय होगा। जिसका एडवांटेज भारत उठाएगा।
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चंद्रमा पर "न्यूक्लियर पॉवर प्लांट" लगाएगा अमेरिका, अमेरिका के इस प्लान से चीन के उड़े होश, चीन भी हो सकता है इस अंतरिक्ष दौड़ में शामिल।
चीनी एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि अमेरिका 2027 तक चंद्रमा पर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट लगाना चाहता है। US Space policy directive - 6 (SPD-6) में कहा गया है कि चंद्रमा की सतह पर एक न्यूक्लियर फिशन पॉवर सिस्टम होनी चाहिए, जो 40 किलोवाट-इलेक्ट्रिक या इससे ज्यादा की बिजली पैदा कर पाए।
SPD-6 में स्पेस न्यूक्लियर पावर और प्रोपल्शन को लेकर अमेरिका की नेशनल पालिसी का जिक्र है, एक चीनी मीडिया रिपोर्ट का दावा है कि अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं के कारण भविष्य में चाँद पर मिलिट्री प्रोजेक्ट्स की रेस लग सकती है क्योंकि अमेरिका अंतरिक्ष में भी सुपर पॉवर बनना चाहता है, इसके नुकसान की परवाह किए बिना।
जबकि अमेरिका दावा करता है कि पॉवर प्लांट "मंगल पर लगातार बने रहने और मंगल की खोज में मदद करेगा", वहीं चीन इसके पीछे अमेरिका की सैन्य योजना मानता है।
चीनी मिलिट्री एक्सपर्ट सोंग झोंगपिंग ने ग्लैबल टाइम्स को बताया कि चंद्रमा हीलियम-3 से समृद्ध है, जिसका उपयोग न्यूक्लियर फिशन के दौरान ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। न्यूक्लियर पॉवर प्लांट के निर्माण के नाम पर अमेरिका परमाणु ईंधन का दोहन करना चाहता है, अमेरिका चंद्रमा को न्यूक्लियर हथियारों के प्रोडक्शन साईट में बदल सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने SPD-6 जारी किया था, जो स्पेस न्यूक्लियर पावर और प्रोपल्शन सिस्टम की जिम्मेदारी भरी और कारगर इस्तेमाल की अमेरिकी नेशनल पालिसी है। यह ऐसे समय में आया है जब चीन के चांग-5 ने सफलतापूर्वक अपना मून मिशन पूरा किया और चाँद से नमूनों के साथ वापस लौटा है।
चीनी एक्सपर्ट का दावा है कि SPD-6 अमेरिका के इस अंतरिक्ष दौड़ में चीन को खींचने के इरादे को दिखाता है, ठीक उसी तरह जैसा कि 1980 के दशक में रोनाल्ड रीगन के 'स्टार वार्स' प्रोग्राम ने सोवियत संघ के साथ किया था। यह अमेरिका की डिफेन्स पालिसी थी जिसका मकसद था अमेरिका को बैलिस्टिक न्यूक्लियर हथियारों से किसी भी हमले से बचाना।
इसके अलावा, अमेरिका SNPP पॉलिसी के प्रयोग से स्पेस में अपनी ताक़त और रणनीतिक बढ़त को बनाए रखना चाहता है। अमेरिका की योजना बाहरी अंतरिक्ष में अतंराष्ट्रीय सहमति के खिलाफ है। 1979 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा द्वारा अपनाई गई मून ट्रीटी के अनुसार, बाहरी आकाशीय पिंड और चंद्रमा किसी के दावे अधीन नहीं हैं। किसी भी माध्यम से उस पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकता। हालाकिं खुद अमेरिका ने इस पॉलिसी पर कायम नहीं रहा, इस साल ट्रम्प द्वारा पास की गयी Artemis Accord चन्द्रमा के खनिजों की व्यवसायिक प्रयोग की इजाज़त देता है, जो 1979 की ट्रीटी के ठीक उलट है।
इस एकॉर्ड में लैंडिंग साइट्स के आसपास "सेफ्टी ज़ोन्स" स्थापित करने की बात कही गयी है, जिसका दूसरा मतलब उस इलाके पर अघोषित कब्ज़ा माना जा सकता है, जो इस आउटर स्पेस ट्रीटी का उलंघन है।
नासा मंगल ग्रह पर भेजेगा AI-Powered रोबोटिक कुत्ते।
नासा वर्तमान में अपने "मार्स डॉग्स" प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में रोबोटिक डॉग्स को मंगल ग्रह पर भेजने की योजना पर काम कर रहा है, जिसके तहत चार-पैर वाले, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस AI संचालित बॉट्स लाल ग्रह के खुरदरे इलाकों और गुफाओं में खोज करेंगे।
कैलिफोर्निया स्थित नासा फील्ड सेंटर, जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने सोमवार (14 दिसंबर) को अमेरिकी जियोफिजिकल यूनियन (AGU) की सालाना बैठक में मंगल पर रोबोटिक डॉग्स को भेजने की योजना को प्रेजेंट किया। रोबोटिक डॉग्स पहिए वाले रोवर्स के समान ही काम करेंगे जैसे स्पीरिट, क्यूरियोसिटी, ओपोर्चुनिटी, और हाल में लांच किया गया, लेकिन रोबोटिक डॉग्स में पहिये वाले रोबोट्स से ज्यादा क्षमतायें होंगी अन्य रोवर्स के मुकाबले में।
रोबोटिक डॉग्स।
नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार, नए रोबोट मंगल ग्रह के मुश्किल इलाके में मिशन को अंजाम देने के लिए ज्यादा लचीले और तेज़ होंगे। इसके अलावा, रोबोट में मौजूद सेंसर रोबोट को बाधाओं से बचने, कई रास्तों के बीच चयन करने और दफन सुरंगों और गुफाओं के नक्शे बनाने में सक्षम बनाएगी, जिसका इस्तेमाल बेस में बैठे ऑपरेटर्स कर पायेंगे।
इसी तरह का एक रोबोट है Au-Spot जो Spot नामक चार-पैर वाले मैकेनिकल एक्सप्लोरर का एक नया संस्करण है। स्पॉट को रोबोटिक्स कंपनी बोस्टन डायनेमिक्स ने बनाया है जो बेहद फुर्तीले रोबोट हैं, जो बेहद तेज़ी से इस इलाके को नेविगेट कर सकता है। 60 से अधिक वैज्ञानिकों और इंजीनियर की टीम ने Au-Spot, में नेटवर्क सेंसर और सॉफ्टवेयर लगायें हैं, जिसका इस्तेमाल करके यह रोबोट अपने आस-पास के इलाके को स्कैन, नेविगेट और मैप कर सकता है।
मंगल ग्रह।
लाल ग्रह पर मौजूद पारंपरिक रोवर्स ज्यादातर सपाट सतहों तक ही सीमित हैं। हालांकि, उबड़-खाबड़ इलाकों को पार करके या सतह के नीचे उतरकर ही साइंटिफिक लिहाज़ से दिलचस्प इलाकों तक पहुंचा जा सकता है। नासा के रोबोट डॉग्स उस काम के लिए तैयार हैं, वैज्ञानिकों के अनुसार, रोवर्स के विपरीत, ये रोबोटिक डॉग्स गिरने के बाद भी उठ सकते हैं।
हालांकि, इसमें गिरने का मतलब मिशन फेलियर नहीं है। रिकवरी एल्गोरिदम का प्रयोग करते हुए रोबोट फिरसे खड़े हो सकते हैं।
वहीं ये रोबोटिक डॉग्स वर्तमान रोवर्स की तुलना में लगभग 12 गुना हल्के होंगे। ये 3 मील प्रति घंटे यानि 5 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से ट्रेवल करने की क्षमता रखते हैं, जो इन्हें उबड़ – खाबड़ इलाकों और गुफयों में खोजबीन करने के लिए ज्यादा कारगर बनातें हैं।
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क्यूरियोसिटी रोवर।
दूसरी ओर, क्यूरियोसिटी रोवर ग्रह की सतह के साथ लगभग 0.09 मील प्रति घंटे यानि 0.14 किमी प्रति घंटेकी रफ़्तार से घूमता है, जो बेहद कम है। यही वजह है रोबोटिक डॉग्स को यहाँ ज्यादा फायदा मिलेगा।
नासा 2018 से अपने मंगल अभियानों के लिए ऐसे रोबोट डॉग्स का उपयोग करना चाहता है। ग्रह पर इन रोबोटों की मौजूदगी वास्तव में ग्रह पर खोजबीन को गति दे सकती है जिससे भविष्य के रिसर्च मिशंस में फायदा होगा।
वर्तमान में, रोबोटिक डॉग्स की टेस्टिंग का कम चालू है, जिसमें पृथ्वी पर मंगल जैसे कठिन इलाकों मे इसको टेस्ट किया जा रहा है। टेस्टिंग में ये रोबोटिक्स डॉग्स सुरंगों में घुसने, चलने, वहां से बाहर निकलने, ऊँचाई और ढलान वाले इलाकों मे चढ़ने उतरने की ट्रेनिंग से गुज़र रहें हैं और उन जगहों में ट्रेवलकरने की ट्रेनिंग ले रहे हैं, जो मंगल की सतह से मेल खाते हैं।
मंगल पर इन रोबोटिक डॉग्स को भेजा जाना तय है और भविष्य में इन्हे मंगल पर भेजे जाने की संभावना है, लेकिन अब तक Au-Spot के लिए कोई लॉन्च तारीख तय नहीं है।
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