बाबा का ढाबा का ड्रामा – सिर्फ सोशल मीडिया का झोल।
बाबा का ढाबा (Baba ka Dhaba), इस नाम से आजकल वे सभी लोग परीचित होंगे जो या तो किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपना समय बिताते हैं या फिर नियमित रूप से समाचार देखते हैं। साथ ही अखबारों में भी बाबा का ढाबा खूब चर्चा में है। यदि आपने पिछली दो लाईनें ध्यानपूर्वक पढ़ी तो आप पाएंगे कि जिन लोगों को किसी भी प्रकार की जानकारी लेने की आदत है या फिर ऑनलाईन समाज में रुचि रखते हैं, केवल उन्हीं लोगों में बाबा का ढाबा मशहूर है या यूं समझ लीजिए कि ऐसा किया गया है। तो आज इस लेख में गौरव वासन (Gaurab Wasan) और बाबा दोनों की ही पोल खोलने की कोशिश करेंगे।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल।
सोशल मीडिया बहुत बड़ा जाल है। और जो लोग इसके काम करने की तरीके को समझ गए हैं वे इसका अच्छा इस्तेमाल करते हैं। और कुछ दूसरे हैं जो सोशल मीडिया में कई तरह के कंटेंट जैसे वीडियो, फोटो आदि डालते रहते हैं, लेकिन उन्हें कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगती। बाबा का ढाबा की कहानी भी इनमें से ही एक है। शुरुआत से लेकर अबतक इस कहानी में कई झोल नजर आते हैं।
पहले कहानी की शुरूआत।
स्वाद ऑफिशिल (Swad Official) नाम के एक यूट्यूब (YouTube) चैनल चलाने वाले गौरव वासन नाम के यूट्यूबर ने 07 अक्तूबर 2020 को हमेशा की तरह एक खाना बनाने वाली छोटी दुकान का वीडियो बनाया और यही वीडियो बाबा का ढाबा नाम से मशहूर हो गई। इस कहानी ने इतना तूल पकड़ा कि हजारों लोग बाबा को दान देने लगे और उनके ढाबे में जाकर खाना खाने वालों की लाईनें लगने लगी । मजे की बात है कि वह सारा पैसा गौरव वासन के बैंक खाते में जाता रहा, न कि बाबा के खाते में। जबकि बाबा का अपना बैंक खाता पहले से ही था।
विवाद।
यहाँ तक तो सब ठीक था, लेकिन जैसे ही बाबा की कहानी ठंडी पड़ने लगी, तभी एक और खबर सामने आई कि बाबा ने गौरव वासन पर केस कर दिया है कि गौरव ने फंड/दान के रूप में 20 लाख रुपये इक्ठ्ठे किए थे, लेकिन बाबा को केवल 2 लाख रुपये का ही चेक मिला है। इससे तो यह मामला मीडिया में और भी अधिक छा गया।
असली झोल की पोल।
आजकल अधिकतर नौजवान ऑनलाईन वीडियो बना कर पैसा कमाने की जुगत में लगे हैं। इसी रेस में गौरव वासन का नाम भी आता है। बाबा का ढाबा वीडियो से पहले भी उन्होंने कई छोटे ढाबों की वीडियो बनाई, लेकिन उनके व्यू (views) बहुत अधिक नहीं होते थे। ऐसी स्थिति में जब कोई यूट्यूबर दिनभर घूम कर वीडियो बनाए और अधिक व्यू न मिले तो कुछ आसान रास्ते हैं जो वह आमतौर पर अपनाता है, जिससे उसका चैनल बहुत अधिक मेहनत और अच्छे व् अपने बनाए कंटेट के बिना जल्दी मशहूर हो जाए। ऐसा ही एक रास्ता है किसी मार्किटिंग कंपनी को अपना चैनल बढ़ाने के लिए पैसे देना। और इस केस में ऐसा ही लगता है।
ऐसा इसीलिए लगता है क्योंकि यदि आपने गौरव वासन के चैनल की कुछ पुरानी वीडियो देखी होंगी तो पाया होगा कि पहले वे सभी इतना अधिक व्यू नहीं दे पाई थी। एक और फर्क जो उनमें और बाबा का ढाबा में था वह ये कि बाबा का ढाबा वीडियो में बाबा अपनी मजबूरी और गरीबी की दास्तां सुनाते वक्त बहुत रोये थे। साथ ही उन्होंने ऐसे हालातों में किसी भी तरह से हार मानने से इंकार कर दिया था। इसके अलावा इतनी मुश्किलों और बुढ़ापे में भी पत्नी का साथ मिल रहा था। यदि आप किसी अच्छे पी.आर. कंपनी (P.R. company) वाले हो तो आप इसमें मशहूर होने का पूरा निचोड़ पाओगे।
लोगों की भावनाओं को छेड़ कर पाए व्यू।
इस वीडियो में मेहनत तो थी ही, साथ ही उसपर सहायता का भाव, बुढ़ापा, गरीबी, आंसू, जुझारूपन, हार न मानने की शक्ति, व रिश्ते निभाने का भाव जैसी भावनाएं कूट – कूट कर भरी थी। जब भी लोग सोशल मीडिया पर भावनाओं से ओत – प्रोत होती वीडियो देखेंगे तो उनके मन के भाव भी इससे प्रभावित होंगे। वे चाहेंगे कि सोशल मीडिया पर उन्हें जानने वाले सभी लोग ऐसी वीडियो देखें। इसीलिए तो भारत में एवेंजर्स या स्टार वॉर से अधिक कभी खुशी कभी गम, बागबान जैसी फिल्में ही बनती हैं।
हम ऐसा नहीं कह रहे कि किसी मार्केटिंग कंपनी ने ऐसा ड्रामा रचा होगा, लेकिन हम केवल ऐसी संभावना ही जता रहे हैं।
यदि यह मामला यहीं खत्म हो जाता तो भी बात समझ में आती कि यह वीडियो स्वयं वायरल हुई है, न कि किसी प्रकार के ऐड या कंपनी द्वारा की गई है। इसके बाद जैसा कि फिल्मों में होता है, वहीं हुआ। जिसे लोगों ने प्यार और पैसा दिया वही आज लोगों के लिए विलेन बन गया। बाबा ने गौरव पर केस कर दिया कि 20 लाख रुपये इक्ठ्ठे हुए थे, किंतु उन्हें केवल 2 लाख रुपये ही मिले। और यह ऐसे समय में हुआ है जब इस वीडयो के बारे में लोग अब कम बात करने लगे थे। इसमें चाहे कितना ही सच या झूठ हो लेकिन इस बार बाबा का ढाबा और गौरव वासन दोनों ने ही दुगुनी तेजी से लोगों व मीडिया का ध्यान आकर्षित किया।
अभी खत्म नहीं होगा ये मामला।
जिस हिसाब से यह कहानी चल रही है लगता नहीं कि जल्दी ही यह किस्सा खत्म होगा। कुछ दिनों तक बाबा द्वारा केस की बातें की जाएंगी। उसके बाद जब यह बात ठंडी पड़ने लग जाएगी तो नई बात सामने आएगी कि शायद या तो बाबा किसी तीसरे से भी बातचीत में थे या फिर गौरव की तरफ से नया मोड़ आ सकता है। जो भी मामले को दिलचस्प बनाने का काम बहुत ही अच्छे से किया गया है
फिल्मों में भी होता है ऐसा।
आपने गौर किया होगा कि आजकल जब भी कोई फिल्म आने वाली होती है तो उससे पहले या तो उसका विरोध शुरू हो जाता है या फिर कोई न कोई विवाद उसके साथ जुड़ जाता है। आपको क्या लगता है कि हर बार क्या यह संयोग होगा। जी नहीं। हर फिल्म की प्रोमोशन का एक अलग सा बजट होता है और बहुत समय से यह चलन शुरू हो गया है कि विवाद होंगे तो लोग फिल्म के बारे में बात भी करेंगे, जिससे लोग इसके बारे में जागरुक रहेंगे और देखने भी जाएंगे। । दीपिका पादुकोण की टीम जिसने उन्हें JNU जाने की सलाह दी थी, हालांकि वह उनके लिए बहुत बुरा साबित हुई।
क्यों किया जा सकता है ऐसा?
यदि फिर से संभावनाओं की बात कि जाए तो मशहूर होने की यह आसान ट्रिक हो सकती है कि बिना अधिक मेहनत किए लोगों से पैसे भी जमा हो जाएं और चैनल को भी एक जोरदार तेजी मिल जाए। ऐसे मामलों में यूट्यूब, फेसबुक आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी पैसे लेकर ऐसी वीडियो या चैनलों को मशहूर करते हैं। वरना हर जगह हजारों लोग हैं जो सच में ऐसा कंटेंट बनाते हैं जिसे उनका अपना व असली कहा जा सके। लेकिन चूंकि वे विवादित वीडियो नहीं बनाते लोग उनपर ध्यान नहीं देते।
बाबा का ढाबा वीडियो 40 लाख लोग देख चुके हैं और उसके बाद की वीडियो भी एक एक लाख व्यू कमा रही है। उनके सबस्क्राईबर भी बहुत तेजी से बड़े हैं।
तो बात बस यूं है कि जो दिख रहा है वह सच भी हो सकता है, लेकिन इसकी संभावना बहुत कम दिखती है। चाहे पूरी कहानी शुरू से ही पटकथा (Script) पर आधारित हो, या बाद में इसे ऐसा बनाया गया हो ताकि मामला लगातार तूल पकड़ता रहे, लेकिन सच यही है कि जो दिखता है, वही बिकता है।
पहले भी होता रहा है ऐसा।
इससे पहले यदि कुछ और वीडियो की बात करें तो धिनचक पूजा, दीपक कलाल आदि के ऐसे वीडियो थे जो असल में अतरंगे थे और लोगों को आम जनजीवन की वास्तविकता से अलग लगे। इन्होंने लोगों के मनोरंजन व अतरंगी चीजे देखने के भावों को छेड़ा। जैसे लोग जेसीबी की खुदाई को देखने में जुत जाते हैं। इसी तरह सुशांत सिंह राजपूत केस में भी लोगों का भावनात्मक जुड़ाव था, हालांकि जल्दी ही इसने राजनीतिक मोड़ भी ले लिया। इसके अलावा “मैं गरीब हूँ” नाम से भी एक लड़के की वाडियो हालिया दिनों में खूब वायरल हुई थी। इसके अलावा “रसोड़े में कौन था” वाली वीडियो भी इसी श्रेणी में आती है।
आंसू, गरीबी, अतरंगी हरकतें, हिंसा, सेक्स, अचानक खुशी के अहसास की भावनाएं, तुरंत याद होने वाले संगीत आदि ये वो चीज़ें हैं जिनका इस्तेमाल बहुत समय से विज्ञापनों में होता आ रहा है। अब इन्हें सोशल मीडिया पर भी बेधड़क प्रयोग में लाया जा रहा है। बस इसमें झूठ का मसाला इतना ज्यादा हो गया है कि लोग अब किसी पर विश्वास करने से कतराने लग गए हैं।
सीख।
इस सारे प्रकरण से यह भी समझ में आता है कि लोग किस तरह अपने जीवन का मूल्यवान समय सोशल मीडिया में बर्बाद करते हैं। और सोशल मीडिया को समझने वाले ऐसे लोगों के समय को खर्च कर अपने लिए लाखों रुपये जोड़ लेते हैं।
आशा है कि इस लेख ने कुछ हद् तक लोगों की मानसिकता से हो रहे खिलवाड़ को आसान शब्दों में समझने में मदद की होगी। यह भी उम्मीद की जाती है कि लोग नियमित तौर पर अपने आस पास के गरीबों की मदद स्वयं करना सीखें और बिना जाने कहीं भी दान देने से बचें, खासकर ऑनलाईन पोर्टलों पर।
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