राजनीति भले ही पुरुषों प्रधान कहलाती हो, किंतु फिर भारतीय राजनीति में कुछ ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने राजनैतिक ज्ञान और शक्ति से भारत में अपना अलग ही वर्चस्व कायम किया है। फिर चाहे वे किसी भी राजनैतिक पार्टी से संबंध रखती हों। ऐसी ही लिस्ट में सबसे ऊपर नाम आता है भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी का।
फिलहाल वे भारतीय राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं हैं, किंतु इससे उनके राजनैतिक कद पर कोई फर्क नहीं पड़ता । इटली में जन्मी और पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी के साथ विवाहोपरांत भारत में कदम रखने वाली सोनिया गाँधी शुरू से राजनीति में सक्रिय नहीं थी। किंतु अपने पति के देहांत के 07 साल बाद 1997 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और अगले 19 सालों तक कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनी रहीं। इस दौरान उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस ने दिंवगत प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को की सत्ता को चुनौती दी और वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। किंतु भाजपा और उनके सहयोगी दलों ने उनका पुरज़ोर विरोध कर उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया, जिसके बाद डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया।
उनपर नेशनल हेराल्ड और अग्स्ता वेस्टलैंड डील में भ्रष्टाचार करने के आरोप भी लगे। 2017 में उन्होंने पार्टी की अध्यक्षता पद से भी इस्तीफा दे दिया और अपने बेटे राहुल गाँधी को अपनी जगह चुना। किंतु 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हुई हार ने फिर से उन्हें पार्टी की अध्यक्षता करने पर मजबूर कर दिया।
शक्तिशाली राजनेताओं में ममता बनर्जी का नाम न हो ऐसा होना वर्तमान में संभव नहीं है। वे पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं और केंद्र सरकार में भी कैबिनेट मंत्री होते हुए विभिन्न पदों को संभाल चुकी हैं, जिसमें प्रथम महिला रेलमंत्री होने का दर्जा भी उन्हें प्राप्त है। वे एनडीए और यूपीए दोनों ही गठबंधनों में काम कर चुकी हैं।
1970 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर राजनैतिक जीवन की शुरुवात की और 1997 में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। वर्ष 2011 में उन्होंने कांग्रस पार्टी के साथ गंठबंधन में पश्चिम बंगाल में सरकार बनाई और पहली बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। इसके बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही चली गई, जिसका कारण उनकी राजनैतिक सूझबूझ, त्वरित निर्णय लेने की कुशलता और उनके द्वारा किए गए विभिन्न सेक्टरों में सुधार। इन्हीं कारणों से वे वर्ष 2016 में भारी मतों से जीत कर लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनी। किंतु इसी के साथ उनकी सरकार पर कई बड़े घोटालों के आरोप भी लगते रहे और विवादों से भी उनका नाता जुड़ता चला गया।
हाल – फिलहाल में उनकी सरकार प्रदेश में हो रही बीजेपी व आरएसएस कार्यकर्ताओं की मौतों के कारण विवादों में है।
केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण पिछले एक दशक से भी अधिक समय से राजनीति में सक्रिय हैं और भाजपा में कई जिम्मेदारियाँ संभालने के बाद वे आज इतने महत्वपूर्ण पद पर पहँची हैं। फिलहाल वे वर्ष 2014 से कर्नाटक से राज्य सभा की सांसद हैं।
वे पहली बार जनता के समक्ष लोकप्रिय तब हुई, जब उन्हें सितंबर 2017 में रक्षा मंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया। जिसके बाद से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया, खासकर उन्होंने राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर सरकार का बहुत अच्छे से बचाव किया।
पाकिस्तान में बालाकोट हवाई हमले भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ। रक्षा मंत्री के तौर पर उनके कार्यों से प्रभावित होकर उन्हें 2019 के मोदी कैबिनट में वित्त मंत्री का कार्यभार दिया गया। किंतु इस दौरान उन्होंने लोगों की तीखी प्रतिक्रियाओं का भी सामना करना पड़ा, क्योंकि वित्तीय रणनीतियों पर मोदी सरकार कभी लोगों की अपेक्षाओं के अनुरुप प्रदर्शन नहीं कर पाई है। शीघ्र ही देश और दुनिया को कोविड 19 जैसी महामारी का सामना करना पड़ा, जिससे उनपर किसी भी मंत्री से अधिक जिम्मेदारी आ गई है।
स्मृति ईरानी को यूं तो एक बड़ा भारतीय वर्ग पहले से ही जानता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में राजनीति में उनकी सक्रियता ने उनके कद को बहुत ऊंचा कर दिया है। पहली मोदी सरकार में मानव संसाधन मंत्री तथा कपड़ा मंत्री के पश्चात अब केंद्रीय कपड़ा मंत्री एवं केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री संभालने वाली स्मृति ईरानी दमदार भाषणों और गाँधी परिवार को सीधी चुनौती देने के लिए मशहूर है।
2019 के लोक सभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी को अमेठी से हराकर एक बड़ा कीर्तीमान रचा था। वे शुरू से ही अपने तीखे तेवरों के लिए जानी जाती आई हैं और इसी के कारण वे विवादों में भी घिरी रहती हैं। वे बहुत पुरजोर तरीके से महिला सशक्तिकरण को अहमित देती हुई नजर आती हैं। वे पहली बार वर्ष 2011 में राज्य सभा से भाजपा के लिए सांसद चुनी गई थी, हालांकि वे इससे पहले भी कई बार अलग – अलग मोर्चों पर पार्टी का कई कमान संभालती आई थी।
मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार की मुख्यमंत्री रही हैं और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की लंबे अरसे से राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। उनकी राजनीति का प्रमुख कोण अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों के ईर्द – गिर्द घूमी है। उनके मुख्यमंत्री के कार्यकाल को लोग सुशासन कार्याकाल भी कहते हैं।
कानून व्यवस्था को कायम करना और गुंडाराज को कम करना उनके राज में बेहतर ढंग से हो पाया, जिसकी प्रशंसा उनके विरोधी भी करते हैं। लेकिन किसी भी बड़े राजनेता की तरह उनके कार्यकाल में भी विवाद और भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगते ही रहे हैं। इन सबके बावजूद वे आज भी उत्तर प्रदेश के बड़े वर्ग को आज भी प्रभावित करती हैं। 2017 में उनकी पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ प्रदेश चुनावों के लिए गठबंधन किया था, किंतु वह प्रयोग असफल रहा। उसके बाद से लगातार उनकी पार्टी का कद घटता ही गया है और भाजपा उसकी जगह भरने में सफल हो रही है। इन सब के बावजूद मायावती का व्यक्तित्व आज भी उतना ही ऊंचा है और वे संवेदनशील मुद्दों पर उनके विचारों को मीडिया व लोगों बीच गंभीरता से लिया जाता है।